shahil khan

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छोटे छोटे सवाल –११

राजेश्वर ने कहा, "यहाँ कोई बोर्ड तो नहीं लगा है।" इसके बाद राजेश्वर के साथ सभी की प्रश्नवाचक दृष्टियाँ मास्टर उत्तमचन्द के चेहरे पर जा लगीं।

मास्टर उत्तमचन्द के माथे पर दो बारीक बल पड़ गए। उन्होंने गौर से राजेश्वर की ओर देखा । पेंसिल निकालकर तीनों नाम नोट किए और तुरन्त शान्त होकर बोले, "अब इंटरव्यू शुरू होनेवाला है। हेड क्लर्क आप साहबान में से एक-एक का नाम पुकारेंगे। पहले हम असिस्टेंट टीचर्स का इंटरव्यू लेंगे, फिर हिन्दी-लेक्चरर्स का। इंटरव्यू के बाद भी कोई साहब यहाँ से जाएँ नहीं।"

और इतना कहकर वह तेजी से कुरता फरफराते दरवाजे से बाहर निकल गए और फिर एक ही क्षण बाद लौटकर पुनः प्रवेश करते हुए बोले, "आप साहबान एजुकेटेड लोग हैं, और यह कॉलेज एजुकेशन का मन्दिर है। आपका फर्ज है कि इसकी 'सैन्कटिटी' की रक्षा करें। आप सोचें कि यह स्थान सिगरेट पीने की जगह नहीं हो सकता।"

और मास्टर उत्तमचन्द फिर बाहर चले गए। उन्होंने क्या कुछ नहीं कहा था। मगर उनकी आवाज में लेश-मात्र भी कड़वाहट नहीं थी। आँखें बन्द करके कोई सुनता तो उनके वाक्य किसी जैन सन्त के प्रवचन प्रतीत होते। उत्तमचन्द का सबसे ज़्यादा प्रभाव श्रोत्रिय पर पड़ा था। उनके जाते ही वह बोला, "नाम नोट करके ले गया है।" और एक आशंका से उसका दिल धड़क उठा। राजेश्वर बोला, “अरे सैकड़ों फिरते हैं इस जैसे ! इसकी औकात क्या है ? मेम्बरों के पीछे दुम हिलाता फिरता है कुत्ते की तरह।" असरार ने कहा, "औकात तो बहुत है इसकी, ठाकुर साहब ! कॉलेज का बिना ताज का बादशाह है। प्रिंसिपल तो नाम मात्र का होता है यहाँ। असली प्रिंसिपल यही है। स्याह करे या सफ़ेद, पूरा सियासत-दाँ है।" "तब तो बड़ा बुरा हुआ आप लोगों के हित में।" केशव ने उन सबके अन्धकारमय भविष्य की कल्पना में अपने उज्ज्वल भविष्य को निहारते हुए कृत्रिम सहानुभूति से कहा।

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